मैंने पूछा था
बादलों की गड़गड़ाहट से
हवाओं की सनसनाहट से
पेड़ों की छटपटाहट से
आँचल की सरसराहट से,
और पूछा था
गीली सूखी मिटटी से
भीगती बारिश से
मचलते चाँद से
झपकते तारों से,
कि
कब थमोगे तुम सब?
यूँ की
ढूँढने थे मुझे,
हमारे तुम्हारे कदमों के निशान
जो चले थे कुछ दूर साथ-साथ
जो दब गए थे एक युग बीते
वहां
पगडंडियों पर सूखे पत्तों के नीचे,
और
यहाँ
मन की पहली तह के नीचे.
सुंदर अभिव्यक्ति...कविता बहुत अच्छी लगी..धन्यवाद!!!
ReplyDeleteजो दब गए थे एक युग बीते
ReplyDeleteवहां
पगडंडियों पर सूखे पत्तों के नीचे,
और
यहाँ
मन की पहली तह के नीचे.
--बहुत गहन!! वाह!!
यूँ की
ReplyDeleteढूँढने थे मुझे,
हमारे तुम्हारे कदमों के निशान
बहुत कोमल एहसास. नाज़ुक सी बहुत प्यारी कविता.
वाह वाह
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत
छोटी है पर भावों से परिपूर्ण
अच्छी कविता देने के लिए धन्यवाद
http://chokhat.blogspot.com/
gehre jazbaat sunder bayan huye hai,bahut khub
ReplyDeleteभावनाओ की अभिव्यक्ति अप्रतिम .....इसके आगे कोई शब्द नहीं है कहने के लिए ...
ReplyDeleteGreat!!
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