Saturday, March 28, 2009

मम्मी

मम्मी,
तुम्हारी हँसी
जो
चस्पां रहती है ज़हन में हरदम
और
कभी जब मैं हंसती हूँ
तो
ठहर कर लगता है
मेरे भीतर तुम हंस रहीं थीं .

Friday, March 27, 2009

तीन सूरज

एक

सूरज
वही मस्तमौला सा सूरज
फिर उगा है
पर
आज वो आसमान में नहीं
मेरे भीतर खिला है।


दो

अलसाई सुबह
और
लम्स तुम्हारी पलकों का
आज
सूरज ने फिर दस्तक दी है
मेरे मन के दरवाजे पर.

तीन

नीम के पत्तों से झरता सूरज
और
हरी घास पे पसरता सूरज
कैक्टस में उलझता सूरज
और
बेंच पे बिछता सूरज
...सब अच्छा लगता है
क्योंकि
यहीं कहीं तुम टहल रहे हो
दांतों में दबाये ब्रश को
और
हथेली में मंजन लिए.