Thursday, October 8, 2009

पहली तह

मैंने पूछा था
बादलों की गड़गड़ाहट से
हवाओं की सनसनाहट से
पेड़ों की छटपटाहट से
आँचल की सरसराहट से,
और पूछा था
गीली सूखी मिटटी से
भीगती बारिश से
मचलते चाँद से
झपकते तारों से,
कि
कब थमोगे तुम सब?
यूँ की
ढूँढने थे मुझे,
हमारे तुम्हारे कदमों के निशान
जो चले थे कुछ दूर साथ-साथ
जो दब गए थे एक युग बीते
वहां
पगडंडियों पर सूखे पत्तों के नीचे,
और
यहाँ
मन की पहली तह के नीचे.