मैंने पूछा था
बादलों की गड़गड़ाहट से
हवाओं की सनसनाहट से
पेड़ों की छटपटाहट से
आँचल की सरसराहट से,
और पूछा था
गीली सूखी मिटटी से
भीगती बारिश से
मचलते चाँद से
झपकते तारों से,
कि
कब थमोगे तुम सब?
यूँ की
ढूँढने थे मुझे,
हमारे तुम्हारे कदमों के निशान
जो चले थे कुछ दूर साथ-साथ
जो दब गए थे एक युग बीते
वहां
पगडंडियों पर सूखे पत्तों के नीचे,
और
यहाँ
मन की पहली तह के नीचे.