Thursday, October 8, 2009

पहली तह

मैंने पूछा था
बादलों की गड़गड़ाहट से
हवाओं की सनसनाहट से
पेड़ों की छटपटाहट से
आँचल की सरसराहट से,
और पूछा था
गीली सूखी मिटटी से
भीगती बारिश से
मचलते चाँद से
झपकते तारों से,
कि
कब थमोगे तुम सब?
यूँ की
ढूँढने थे मुझे,
हमारे तुम्हारे कदमों के निशान
जो चले थे कुछ दूर साथ-साथ
जो दब गए थे एक युग बीते
वहां
पगडंडियों पर सूखे पत्तों के नीचे,
और
यहाँ
मन की पहली तह के नीचे.

7 comments:

  1. सुंदर अभिव्यक्ति...कविता बहुत अच्छी लगी..धन्यवाद!!!

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  2. जो दब गए थे एक युग बीते
    वहां
    पगडंडियों पर सूखे पत्तों के नीचे,
    और
    यहाँ
    मन की पहली तह के नीचे.


    --बहुत गहन!! वाह!!

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  3. यूँ की
    ढूँढने थे मुझे,
    हमारे तुम्हारे कदमों के निशान
    बहुत कोमल एहसास. नाज़ुक सी बहुत प्यारी कविता.

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  4. वाह वाह
    बेहद खूबसूरत
    छोटी है पर भावों से परिपूर्ण
    अच्‍छी कविता देने के लिए धन्‍यवाद
    http://chokhat.blogspot.com/

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  5. gehre jazbaat sunder bayan huye hai,bahut khub

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  6. भावनाओ की अभिव्यक्ति अप्रतिम .....इसके आगे कोई शब्द नहीं है कहने के लिए ...

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