हम बच्चों की मुठ्ठी से
रेत की तरह फिसलता गया ..
हम पलते गए ..
हमारे पलने-पालने के फेर में
पता ही नहीं चला
कब माँ बड़ी हो गई
सुनते आये थे
और यकीन भी पाले थे
कि माँ
उम्र- चोर है ..
हम मुगालते में पड़े रहे
अपनी-अपनी फ़रमाइश करते रहे
खेलते रहे उससे
खींचते रहे उसे
कभी ध्यान ही नहीं दिया
कब माँ बड़ी हो गई
और वो साठ की दहलीज पर आ गई .
चलो,
अब हम उससे और शरारत करेंगे
चिढ़ाएंगें ---कहेंगे
माँ, हमारी सठियाई माँ ...
वो वहीँ टीवी के सामने से
सोफे पे पसरे- पसरे
रिमोट खींच कर मारेगी
मुस्कुराएगी....
बस...ऐसे ही चलता रहेगा ..
वो बड़ी होती रहेगी
पार करती रहेगी
खरामा -खरामा
दहलीज दर दहलीज़ .....
very realistic!
ReplyDeleteVery real, our great mothers!!
ReplyDeletefantastic bharti...........likhna band kyo kiya...u should write again
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