Friday, February 25, 2011

माँ बड़ी हो गयी


वक़्त

हम बच्चों की मुठ्ठी से

रेत की तरह फिसलता गया ..

हम पलते गए ..

हमारे पलने-पालने के फेर में

पता ही नहीं चला

कब माँ बड़ी हो गई

और वो साठ की दहलीज पर गई .

सुनते आये थे

और यकीन भी पाले थे

कि माँ

उम्र- चोर है ..

हम मुगालते में पड़े रहे

अपनी-अपनी फ़रमाइश करते रहे

खेलते रहे उससे

खींचते रहे उसे

कभी ध्यान ही नहीं दिया

कब माँ बड़ी हो गई

और वो साठ की दहलीज पर गई .

चलो,

अब हम उससे और शरारत करेंगे

चिढ़ाएंगें ---कहेंगे

माँ, हमारी सठियाई माँ ...

वो वहीँ टीवी के सामने से

सोफे पे पसरे- पसरे

रिमोट खींच कर मारेगी

मुस्कुराएगी....

बस...ऐसे ही चलता रहेगा ..

वो बड़ी होती रहेगी

पार करती रहेगी

खरामा -खरामा

दहलीज दर दहलीज़ .....

हमारे देखते देखते .

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