Sunday, April 12, 2009

नसीहत

वक़्त हुआ
कोई खेल नहीं खेला ...

चलो आओ
सोई रातों को जगा कर लायें
भूले वादों को सजा कर लायें
बिखरी यादों को जमा कर लायें
गुज़रे लम्हों को बुला कर लायें

पर
देखो,
रूठना तुम
देना नसीहत
कि
हो जाओगी लहूलुहान
कि ...

बीती बातों को उधेड़ा नहीं करते
सपनों की किरचों को बटोरा नहीं करते।
कि ...

रोशनी में अंधेरों को टटोला नहीं करते
पानी में लकीरों को उकेरा नहीं करते.

3 comments:

  1. thoda kaam bhi kal liya karo kabhi.

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  2. सपनों की किरचों को बटोरा नहीं करते।
    क्या बात है ...

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  3. I m not at all connoisseur of poetry but your pice has tuch the core of my heart, specially lastline (Makta in Urdu). congrats for such nice poem. plz accept my commets in form of compliment.keep on bloging

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